आइये जानते हैं इस मिशन से जुड़ी बड़ी बातें….
सभी मापदंडों की जांच करने और लैंडिंग का निर्णय लेने के बाद इसरो निर्धारित समय पर लैंडिंग से कुछ घंटे पहले अपने भारतीय डीप स्पेस नेटवर्क (आईडीएसएन) से सभी आवश्यक कमांड लैंडर मॉड्यूल (एलएम) पर अपलोड करेगा।
चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग को लेकर क्या कहते है इसरो के अधिकारी?
इसरो के अधिकारियों के मुताबिक, लैंडिंग के लिए करीब 30 किलोमीटर की ऊंचाई पर लैंडर संचालित ब्रेकिंग चरण में प्रवेश करेगा और स्पीड को धीरे-धीरे कम करके चंद्रमा की सतह तक पहुंचने के लिए अपने चार थ्रस्टर इंजनों को रेट्रो फायरिंग करके इस्तेमाल करना शुरू करेगा. इससे यह सुनिश्चित होगा कि लैंडर हादसे का शिकार न हो क्योंकि चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण भी काम करेगा.
6.8 किलोमीटर की ऊंचाई पर केवल दो इंजनों का इस्तेमाल किया जाएगा, अन्य दो इंजनों को बंद करने का उद्देश्य लैंडर को आगे की ओर उतरते समय उल्टा जोर देना है. फिर करीब 150 से 100 मीटर की ऊंचाई पर लैंडर अपने सेंसर और कैमरों का इस्तेमाल करके सतह को स्कैन करेगा ताकि यह पता चल सके कि कहीं कोई बाधा तो नहीं, इसके बाद यह सॉफ्ट-लैंडिंग करने के लिए नीचे उतरना शुरू कर देगा.
ISRO चेयरमैन एस सोमनाथ ने साझा की ये जानकारी
इसरो चेयरमैन एस सोमनाथ ने 9 अगस्त को विक्रम की लैंडिंग को लेकर कहा था- ‘अगर सब कुछ फेल हो जाता है, अगर सभी सेंसर फेल हो जाते हैं, कुछ भी काम नहीं करता है, फिर भी यह (विक्रम) लैंडिंग करेगा, बशर्ते एल्गोरिदम ठीक से काम करें। हमने यह भी सुनिश्चित किया है कि अगर इस बार विक्रम के दो इंजन काम नहीं करेंगे, तब भी यह लैंडिंग में सक्षम होगा।’
उन्होंने बताया कि चंद्रयान-3 के आखिरी 19 मिनट सांसें रोक देने वाले होंगे। लैंडिंग शुरू होते समय गति 6,048 किमी/घंटा होगी। चांद को छूते समय यह 10 किमी/घंटे से भी कम होगी। उतरने के लिए स्थान का चुनाव ISRO कमांड सेंटर से नहीं होगा। लैंडर अपने कंप्यूटर से जगह का चुनाव करेगा।
न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, इसरो प्रमुख एस सोमनाथ ने हाल में कहा था कि लैंडिंग का सबसे अहम हिस्सा लैंडर के वेग को 30 किलोमीटर की ऊंचाई से फाइनल लैंडिंग तक कम करने की प्रक्रिया और अंतरिक्ष यान को क्षैतिज (Horizontal) से ऊर्ध्वाधर (Vertical) दिशा में पुन: निर्देशित करने की क्षमता होगी।
इसरो प्रमुख सोमनाथ ने कहा, ”लैंडिंग प्रक्रिया की शुरुआत में वेग लगभग 1.68 किलोमीटर प्रति सेकंड है लेकिन (इस स्पीड पर) (लैंडर) चंद्रमा की सतह की ओर क्षैतिज है, यहां चंद्रयान-3 लगभग 90 डिग्री झुका हुआ है, इसे लंबवत (Vertical) होना होगा। इसलिए होराइजेंटल से वर्टिकल में बदलने की यह पूरी प्रक्रिया गणितीय रूप से एक बहुत ही दिलचस्प गणना है। हमने बहुत सारे सिमुलेशन किए हैं. यहीं पर हमें पिछली बार (चंद्रयान-2) समस्या हुई थी।”
लैंडर और रोवर का मिशन कितना है जीवन?
सॉफ्ट-लैंडिंग के बाद रोवर एक साइड पैनल का इस्तेमाल करके लैंडर से निकलकर चंद्रमा की सतह पर उतरेगा। वहां के परिवेश का अध्ययन करने के लिए लैंडर और रोवर का मिशन जीवन एक चंद्र दिवस (पृथ्वी के लगभग 14 दिन) का होगा। हालांकि, इसरो के अधिकारी लैंडर और रोवर के एक और चंद्र दिवस में काम करने की संभावना से इनकार नहीं करते हैं।
लैंडर में एक निर्दिष्ट चंद्र स्थल पर सॉफ्ट-लैंडिंग करने और रोवर को तैनात करने की क्षमता होगी जो अपनी गतिशीलता के दौरान चंद्र सतह का इन-सीटू (यथास्थान) रासायनिक विश्लेषण करेगा. चंद्रमा की सतह पर प्रयोगों को करने के लिए लैंडर और रोवर के पास वैज्ञानिक पेलोड हैं।
Chandrayaan 3 की ऐसे होगी सॉफ्ट लैंडिंग
इसरो की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक देखा जाए तो विक्रम लैंडर 1.68 किमी प्रति सेकंड के वेग यानी 6,048 किमी प्रतिघंटे की स्पीड से चंद्रमा की सतह की ओर बढ़ना शुरू करेगा. यह स्पीड एक हवाई जहाज की रफ्तार से लगभग दस गुना ज्यादा होती है. इसके बाद सभी चालू इंजनों के साथ विक्रम लैंडर धीमा हो जाएगा लेकिन अब भी यह चंद्रमा की सतह पर लगभग क्षैतिज होगा. धीमा होने की प्रक्रिया को ‘रफ ब्रेकिंग चरण’ कहा जाता है जो लगभग 11 मिनट तक रहता है।
कुछ मैन्यूवर के माध्यम से विक्रम लैंडर को चंद्रमा की सतह पर लंबवत बनाया जाएगा, इसके साथ ही ‘फाइन ब्रेकिंग चरण’ शुरू होगा। इसी चरण में ‘चंद्रयान-2’ का लैंडर नियंत्रण से बाहर होकर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था।
चंद्रमा की सतह से 800 मीटर ऊपर क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर दोनों वेग शून्य हो जाते हैं। इस दौरान विक्रम लैंडर चंद्रमा की सतह के ऊपर लैंडिंग वाली जगह के लिए जांच करेगा. इसके बाद वह तस्वीरें लेकर सबसे अच्छी लैंडिंग साइट की खोज के लिए 150 मीटर नीचे आएगा। केवल दो चालू इंजनों के साथ यह चंद्रमा की सतह को छूएगा।
जाने लैंडिंग के बाद क्या होगा?
एक बार जब इसके पैरों पर लगे सेंसर चंद्रमा की सतह को महसूस करेंगे तो इंजन बंद हो जाएंगे और लगभग 20 मिनट का जोखिमभरा चरण समाप्त हो जाएगा। इसके बाद रेजोलिथ नामक चंद्रमा की धूल जब स्थिर हो जाएगी तब विक्रम लैंडर का एक साइड पैनल खुलेगा, जिससे प्रज्ञान रोवर सतह पर आने के लिए रैंप के रूप में इस्तेमाल करेगा।
प्रज्ञान रोवर धीरे-धीरे लुढ़का हुआ चंद्रमा की सतह पर आ जाएगा। सतह पर आने के बाद रोवर चारों ओर घूमने के लिए स्वतंत्र होगा। देश के लिए वह बड़ा क्षण होगा जब लैंडर रोवर की तस्वीर लेगा और रोवर लैंडर की। चंद्रमा की सतह से यह भारत के लिए भारत की पहली सेल्फी होगी।
आज नहीं तो 27 अगस्त को होगी लैंडिंग
चंद्रमा पर उतरने से दो घंटे पहले, लैंडर मॉड्यूल की स्थिति और चंद्रमा पर स्थितियों के आधार पर यह तय करेंगे कि उस समय इसे उतारना उचित होगा या नहीं। अगर कोई भी फैक्टर तय पैमाने पर नहीं रहा तो लैंडिंग 27 अगस्त को कराई जाएगी।
चंद्रयान का दूसरा और फाइनल डीबूस्टिंग ऑपरेशन रविवार रात 1 बजकर 50 मिनट पर पूरा हुआ था। इसके बाद लैंडर की चंद्रमा से न्यूनतम दूरी 25 किलोमीटर और अधिकतम दूरी 134 किलोमीटर रह गई है। डीबूस्टिंग में स्पेसक्राफ्ट की स्पीड को धीमा किया जाता है।